एक रचनात्मक विद्रोह
इन दिनों कुछ बच्चों को मैं कविता लेखन सिखा रहा हूँ. कल एक बच्चे ने एक कविता में 'नींव की ईंट' वाक्यांश (phrase) का प्रयोग किया, लेकिन मुझे लगा कि ईंट की जगह पत्थर होना चाहिए. इसे लेकर कक्षा में एक रोचक बहस शुरू हो गई कि ईंट उपयुक्त होगा या पत्थर.

इस बहस को सुनकर मैं आनंदित हुआ कि कम से कम कुछ लोग साहित्यिक बहस तो कर रहे हैं. वर्ना देश में करोड़ों लोग नेताओं और गोदी मीडिया की गंदगी से अपने को भर रहे हैं: हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान, बलात्कार, हत्या, भ्र्ष्टाचार, दंगे, चोरी.

आपमें से जो लोग देश में बिगड़ते माहौल को देखकर चिंतित हैं और इसे बदलना चाहते हैं, वे सभी कुछ रचनात्मक ढंग से जीवन बिताएँ. यह अपने आपमें एक विद्रोह होगा. और जो विद्रोही है उसे कोई ग़ुलाम नहीं बना सकता, उस पर कोई शासन नहीं कर सकता. केवल मूर्ख ही ग़ुलाम बनाए जाते हैं, उन पर ही नेता शासन करते हैं.

यदि आप भी ग़ुलामी और शोषण से बचना चाहते हैं, तो विद्रोह करिए, एक रचनात्मक विद्रोह, a creative rebellion.